"मित्रता की परख "
"मित्रता की परख "
बात सीधी
तो समझ में,
लोगों को आती नहीं !
खामखा उलझी
बातों को,
लिखकर सुलझाते नहीं !!
बातें सटीक
संक्षिप्त हो,
तो पढ़ने में
सहज होता है !
उच्च दर्शन, आलंकारिक,
भाषा को भला कौन समझता है ?
सब तो अपने
धून के,
राग -मल्हारों
में व्यस्त हैं !
उनके गर्दभ रागों को
सुन के,
हम सब बड़े मस्त हैं !!
मित्र बनने की
ललक है,
सब फौज बनाना
चाहते हैं !!
किसी को किसी से
चाहत नहीं,
फिर भी लोगों को
बताना चाहते हैं !!
हम भूल के भी
उनसे कभी,
यदि गुफ़्तगू करना चाहेंगे !
है कहाँ फुरसत उन्हें,
वे वर्षों तक कहीं छुप जाएंगे !!
फिर अपने
जन्म दिनों पर,
निकाल कर आयेंगे !
सब लोगों की बधाई
शुभकामना,
ले के पाताल में
पुनः चले जाएंगे !!
प्रति उत्तर में
आभार, अभिनंदन,
धन्यवाद देना
उन्हें आता नहीं !
शालीनता, शिष्टाचार के,
मंत्रों को वह कभी दोहराता नहीं !!
मित्रता को सम्मान देकर ही मित्रता को जान पाएंगे !!
यदा- कदा संवाद करने से सभी को पहचान पाएंगे !!