दुर्गावती
दुर्गावती
बुंदेल की वीर भूमि महोबा में जन्मी एक बाला
साहस रक्त बहता जिसे प्रिय था तलवार भाला
कुछ छंदों में सुनाते हैं इस वीरांगना की सुगाथा
सरस शौर्य साहस प्रताप स्वाभिमान की सुकथा,
भारत के वीरों का प्रताप तो सारे जगत ने जाना है
कुछ वीरांगनाएं भी अपने शोर्य प्रताप से देखो
बनी इसका उजला गहना है...
दुर्गावती की तलवार धार ने यूं दुश्मन को यूं खदेला
पति के बाद राज्य सुरक्षा जिम्मा उसने जब थामा है,
हर युद्ध संग्राम उसने अपने बल गौरव से जीती है
सीमा पर ही रोका उनको जिसने गंदी नियत रखी है
कोई योद्धा शासक सामने उसके नहीं टिक पाया है
अपने अंदर की दुर्गा से उसने प्रबल शक्ति बटोरी है,
गजनवी को मार गिराकर घिरी दुश्मन से चहुओर
तब देख संकट निकट उसने खुद की बलि चढ़ाई है
शत्रु से मरना उचित नहीं स्वभिमान दुर्गा का कहता है
स्वयं पर चली यूं तलवार तो मान से वीरगति मिली है,
ऐसी रानी को सादर नमन गर्व से शीश झुकता है
दुर्गावती का कोई सानी नहीं हर भरतवीर कहता है
स्मृति में उनकी थोड़ा साहस बटोरो थाम लो शस्त्र
हर नारी रानी दुर्गावती बनें मेरा मन ये कहता है।