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सोनी गुप्ता

Inspirational

3.3  

सोनी गुप्ता

Inspirational

जीवन संध्या

जीवन संध्या

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कभी बीत रहे थे दिन यूँ ही हँसते -गाते,

कुछ अपना -कुछ सबका दिल बहलाते ,

जाने कब जीवन पथ पर संकट घिर आये ,

अब अपना दुःख हम जाने किसको बतलाते,

इस जीवन की संध्या में ढलता सा जा रहा हूँ ,

जाने कितने अपनों को मैं मनाता जा रहा हूँ ,

ये समय का पहिया बढ़ता ही जा रहा है ,

अब मैं बस यादों को बहलाता जा रहा हूँ I 


सोच रहा राह में किससे मुझको है प्यार मिला ,

या इस जीवन पथ में किसने क्या उपहार दिया,

अब जीवन संध्या हो चली समय यही बताता है ,

नव जीवन का संचार करो राह यही बताता है ,

मन की पीड़ा जाने न कोई संगी साथी छूट गए ,

जिसको समझा अपना सब रिश्ते अब टूट गए ,

रिश्तों के कच्चे धागों से जाने क्यों डोरी बांधी थी ,

अब तो दूर होकर सब अपने ही मुझसे रूठ गएI 


ये तो जीवन है हर पग -पग पर होता समझौता है ,

मन मेरा दुनिया से दूर कहीं एकाकीपन में रहता है ,

इस जीवन पथ में जाने क्या- क्या मुझसे छूट गया ,

इन जीवन के कठिन संघर्षों से आज में अब टूट गया,

जीवन की घड़िया हर -पल मुझको याद दिलाती है ,

इस जीवन सागर में हमें अब क्या खोना क्या पाना है ,

जो जीवन की रस्में हैं अब तो उनकों हमें निभाना है,

सत्य राह में जीवन संध्या का गीत फिर गुनगुनाना है I

 

 


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