जीवन संध्या
जीवन संध्या
कभी बीत रहे थे दिन यूँ ही हँसते -गाते,
कुछ अपना -कुछ सबका दिल बहलाते ,
जाने कब जीवन पथ पर संकट घिर आये ,
अब अपना दुःख हम जाने किसको बतलाते,
इस जीवन की संध्या में ढलता सा जा रहा हूँ ,
जाने कितने अपनों को मैं मनाता जा रहा हूँ ,
ये समय का पहिया बढ़ता ही जा रहा है ,
अब मैं बस यादों को बहलाता जा रहा हूँ I
सोच रहा राह में किससे मुझको है प्यार मिला ,
या इस जीवन पथ में किसने क्या उपहार दिया,
अब जीवन संध्या हो चली समय यही बताता है ,
नव जीवन का संचार करो राह यही बताता है ,
मन की पीड़ा जाने न कोई संगी साथी छूट गए ,
जिसको समझा अपना सब रिश्ते अब टूट गए ,
रिश्तों के कच्चे धागों से जाने क्यों डोरी बांधी थी ,
अब तो दूर होकर सब अपने ही मुझसे रूठ गएI
ये तो जीवन है हर पग -पग पर होता समझौता है ,
मन मेरा दुनिया से दूर कहीं एकाकीपन में रहता है ,
इस जीवन पथ में जाने क्या- क्या मुझसे छूट गया ,
इन जीवन के कठिन संघर्षों से आज में अब टूट गया,
जीवन की घड़िया हर -पल मुझको याद दिलाती है ,
इस जीवन सागर में हमें अब क्या खोना क्या पाना है ,
जो जीवन की रस्में हैं अब तो उनकों हमें निभाना है,
सत्य राह में जीवन संध्या का गीत फिर गुनगुनाना है I