कभी बीत रहे थे दिन यूँ ही हँसते -गाते, कुछ अपना -कुछ सबका दिल बहलाते। कभी बीत रहे थे दिन यूँ ही हँसते -गाते, कुछ अपना -कुछ सबका दिल बहलाते।
I am deleting my poems. I am deleting my poems.
शाम से कोई साया सा लिपटा है मेरे मन से भी शाम से कोई साया सा लिपटा है मेरे मन से भी
मैं न कहूँगी की माँ का ख़याल रखना, क्योंकि तुम तो हो उसका सपना मैं न कहूँगी की माँ का ख़याल रखना, क्योंकि तुम तो हो उसका सपना