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एक उम्मीद

एक उम्मीद

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कुछ ऐसा हो कि कुछ विचार हो

मेरे नाम तेरे शहर का अखबार हो।


तू भी इक बार देखना चाहे मुझको

कुछ ऐसा मेरे बारे में कोई समाचार हो।


दुनिया मेरे नाम से बुलाने लगे तुझको

इस कदर तुझ पे हक मेरा बेशुमार हो।


ना जाऊ इश्क़-ए-बंधन तोड़कर कभी

जो तेरी आँखें ही बस मेरी पहरेदार हो।


तेरी खूबसूरती के चर्चे फैले हैं दूर तक

सच तुझे देखने का भी कोई दरबार हो।


अकेले मैं ही ना तड़पूँ इश्क़-ए-दरिया में

कभी आओ तुम भी इस में शुमार हो।


माना बंदिश तुझ पे हजारों पर इक दुआ

कैद जहाँ भी हो तेरी जालीदार दीवार हो।


गर छुपाना लाजमी है तो छुपा मुझको

पर मेहंदी लगे हाथों में कहीं तो नाम 'पंवार' हो।।


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