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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

एक तुम ही नहीं

एक तुम ही नहीं

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आज सत्य के करीब खड़ी हूँ साक्षात नहीं

तुम उस ध्रुव तारे से झिलमिलाते मेरी

कल्पनाओं के आसमान में विराजमान हो।


हर वक्त तुम्हीं को ढूँढ़ती रहती हैं आँखें, 

मन का हर कोना काटने को दौड़ता है

दीवारें भी अब आवाज़ वापस नहीं करती

काश कहीं से अचानक आकर

तुम बोल दो मेरी पलकों पर अपनी

हथेलियाँ दबा कर

तुम्हारी खुशबू से सराबोर कमरे में रखी

हर वो चीज़ में रची बसी महक याद

दिलाती है तुम्हारी।


हर करवट पर बिस्तर की खाली

दूसरी बाजू पर हथेलियों का स्पर्श

नैंनो को भीगो जाता है।

आराम कुर्सी का हवा के झोंके से डोलना

और उस आहट पे मन का आह भरना

दर्द की गर्द में ढह जाता है मेरा वजूद 


भोर की गाढ़ी नींद भी हल्की सी

आहट से उड़ जाती है लगता है की

हर आहट तुम्हारी है लाख चाहने पर भी

तुमसे जुड़ी हर चीजें तुम्हारी याद

दिलाती हैं


वो नीली वाली शर्ट, वो कैप, वो घड़ी,

और वो पेन जब जब देखती हूँ तुम करीब

और करीब महसूस होते हो।

वो गाना जो तुम दिन में मेरे कानों में असंख्य

बार गुनगुनाते थे वो कहीं से बजने पर

कानों में मानो शीशा घोलता है


मेरा मन तुम्हारे खालीपन को भरने से

इंकार करता है।

तुमसे वाबस्ता हर बात तुम्हारी यादों के

एहसास को जीवंत कर देती है।

क्या करूँ दुनिया की कोई शै तुम्हारी

कमी को पूरा करने में असमर्थ है 

क्या अब कभी तुम्हें देख नहीं पाऊँगी,

छू नहीं पाऊँगी, मिल नहीं पाऊँगी.. 

ये कैसा दस्तूर है ज़िंदगी का करोड़ों के

मजमे में एक तुम ही नहीं हो।



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