एक मधुमक्खी सी
एक मधुमक्खी सी
पेड़ के
एक तने सी
लकड़ी हो रही
तने की
एक डाल सी
सूखकर छितरी हो रही
डाली पे लटके
फल सी अधपकी
बेस्वादी हो रही
फूल की पत्तियों सी
बारिश की एक बूंद के लिए
प्यासी हो रही
पेड़ की
एक जड़ सी
उखड़कर
आसमान में भटकती
एक काली घटा सी
बादलों से पनाह मांगती उनकी
दासी सी हो रही
जीवन है पर
सूख रहा
एक छटपटाती छाल की पपड़ी सा
बिना मधुरस
बिना मकरन्द
बिना मधु
बिना मौनगृह
एक मधुमक्खी सी
रो रोकर
बेहाल हो रही।