एक लाश बोल उठी
एक लाश बोल उठी
देख लोगो को रोते हुए
ज़ोर से लाश एक हँस पड़ी
जीते जी तो जीने दिया ना
गुस्से में वो बिफर पड़ी ||
खरी-खोटी मुझे रोज सुनाते
तनिक भी ना परवाह थी
दिल पे मेरी क्या गुजरती
घुट-घुट के मैं रोती थी ||
खुदा बक्शे अगर, जिन्दगी
औकात दिखा दे अभी सभी
घड़ियाल से आँसू जो बहाते
असलियत आ जाए सामने अभी ||
भूल जायेंगें कुछ ही दिन में
याद ना आयें मेरी कभी
अच्छी-बुरी मेरी बातें कर
सहानुभूति पाएंगें सभी ||
छोड़ चली मैं अहम की दुनियां
ईश्वर के द्वार मैं चली
खुदा के चरण में स्थान मिले
आखिरी ख्वाईश है ये मेरी ||