एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -4)
एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -4)
गुरु ने लव कुश को समझाया,
सिय त्याग नहीं गलती कोई,
एक मर्यादा में निर्णय था,
राजा के कर्तव्य डोर से बंधा,
निमित्त राम थे नियत क्षण था,
इस अन्याय का यदि उत्तर चाहते,
अवध की जनता उत्तरदायी है,
सती सम माता को ना समझा,
घटना सचमुच अति दुःखदायी है,
अवध में जाकर तुम दोनों,
सिय राम चरित का गान करो,
नेक काम में देरी ना हो,
तुरंत अवध प्रस्थान करो,
गुरु की आज्ञा पा लव कुश ने,
अवध में राम कथा गुणगान किया,
सिया राम की मर्यादा का,
प्रजा सम्मुख बखान किया,
समझ रही थी प्रजा कि,
ग़लती बहुत बड़ी उन सबने की थी,
माता का अपमान किया जो,
सती पर शंका की थी,
एक समूह खड़ा हुआ अवध में,
जो सीता को पाक समझता था,
राम समक्ष झुक विनय प्रार्थी,
सिय को वापस लाने का अनुनय करता था,
जान प्रजा की इच्छा राम,
मन ही मन आनन्दित थे,
लव कुश के प्रभाव से,
आश्चर्यचकित सम्मानित थे,
जो कर ना सके वो कई बरस से,
लव कुश ने कुछ दिन में कर दिया,
सिय के लिए प्रजा के मन को,
प्रेम पुनः पुनीत मन भर दिया,
लव कुश को देख देख,
पितृत्व राम का कहता था,
इन बालकों से है क्या रिश्ता,
पर सब अपना सा लगता था,
लव कुश को सम्मान पूर्वक,
राम ने महल में स्थान दिया,
सायंकाल प्रत्येक साँझ में,
दोनों ने रामायण गान किया,
राम सिया के जीवन की,
हर घटना का सुन्दर विवरण था,
लवकुश के पास सिय राम कथा के,
हर चरित्र का वर्णन था,
सिय विवाह वनवास हरण,
सब क्रम में वे सुनाते थे,
सुग्रीव विभीषण हनुमान के,
मिलन की गाथाएँ गाते थे,
सम्मोहित था अवध सारा,
कथा के साथ साथ ही बहता था,
लगता था सिय राम जीवन को,
हर एक अवधवासी जीता था,
भूतकाल वर्तमान भविष्य,
रामायण में वाल्मीकि ने सजा दिया,
उसका ही कुछ अंश लव कुश ने,
अवध में जाकर जनता को सुना दिया।
