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Kusum Joshi

Classics

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एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -2)

एक कथा: माँ सीता (लव-कुश भाग -2)

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एक दिन सिय त्याग कथा का

गुरु ने लव कुश सम्मुख गान किया

क्यों सीता संग अन्याय हुआ

पूरा प्रकरण बखान किया


सुनकर करुण कथा सिया की

दोनों का रक्त लावा सम उबल रहा था

राम से कुछ प्रश्न पूछने

बाल क्षुब्ध मन मचल रहा था


अश्वमेध के अश्व का घोड़ा तब

बंदी बना कर बाँध लिया

हरा कई वीरों को युद्ध में

राम से मिलने का मार्ग बना लिया


वीर भरत शत्रुघ्न लखन

बालकों के सम्मुख निर्बल थे

हनुमान समझ गए सब लीला

बंध गए मोह के बंधन में


बड़े बड़े योद्धा जब सारे

बालकों के तेज से हार गए

जान कोई मायावी ताकत

राम स्वयं युद्ध हेतु आ गए


जब राम स्वयं वन में आए

लव कुश ने प्रश्न प्रहार किए

क्यों त्याग किया उस पावन नारी का

जिसके लिए लंकेश के भी प्राण लिए


चन्द जनों की बातों ने क्यों

कमज़ोर आपको कर दिया

सीता के प्रति राम प्रेम को

कैसे धोबी ने आशंकित कर दिया


हर मानव को किए कर्म का

फल सदा चुकाना पड़ता है

राम हो चाहे मानव कोई

एक दिन प्रश्नों के सम्मुख आना पड़ता है


कोई ना समझे नारी पर

अन्याय मूक सब स्वीकृत होगा

आज नहीं तो भावी पीढ़ी के

तीक्ष्ण शरों से भेदित होगा


राम भी युद्ध भूमि में उस दिन

प्रश्न शरों से भेदित होते जाते थे

उत्तर सूझ नहीं पाता था

मन ही मन में बस बालकों को धन्य बताते थे


व्याकुल बालमन को राम ने

राज धर्म अपना समझाया

ये सब रिश्तों से ऊपर होता है

ऐसा उनको बतलाया


सीता की पावनता पर

उनको ना तनिक भी शंका थी

पर राजा का कर्तव्य ये है कि

करे निराकरण जो प्रजा को आशंका थी।


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