एक हाथ स्वच्छता की ओर
एक हाथ स्वच्छता की ओर
तुम अगर,
एक हाथ
स्वच्छता की ओर बढ़ाओंगे।
इस धरा का,
कोप हर के,
स्वर्ग सम कर जाओंगे।
तुम अगर, एक हाथ
अपने लिए
क्यों?
गंदगी का
अथाह सागर भर रहा।
मौत और बीमारी को,
जीवन में अंगीकृत कर रहा।
देख जीवन दायिनी,
धरा की पीड़ा हर।
इस पर,
फैला कर कचरा
इसे गंदा न कर।
तुम अगर
इसे साफ रख
इसकी सुंदरता को बढ़ाओंगे।
है यह अटल दावा मेरा
मनुज तुम भी,
देवता कहलाओगे
देवता कहलाओगे।