एक छोटा- सा दिया जलता रहा
एक छोटा- सा दिया जलता रहा
एक छोटा- सा दिया जलता रहा ।
सिलसिला भी ज़ुल्म का चलता रहा।
किस तरह पाता सज़ा खूनी कहो,
फै़सला हर बार ही टलता रहा ।
पुण्य का तो पालना मुश्किल हुआ,
पाप अपने आप ही पलता रहा ।
जब चढ़ा सीढ़ी पड़ोसी एक भी ,
बस तुम्हें दिन-रात यह ख़लता रहा ।
आदमी बन आदमी के नाम पर ,
आदमी को आदमी छलता रहा ।