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Atam prakash Kumar

Tragedy

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Atam prakash Kumar

Tragedy

एक छोटा- सा दिया जलता रहा

एक छोटा- सा दिया जलता रहा

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एक छोटा- सा दिया जलता रहा ।  

सिलसिला भी ज़ुल्म का चलता रहा।   

किस तरह पाता सज़ा खूनी कहो,     

फै़सला हर बार ही टलता रहा ।      

पुण्य का तो पालना मुश्किल हुआ,     

पाप अपने आप ही पलता रहा ।       

जब चढ़ा सीढ़ी पड़ोसी एक भी ,       

बस तुम्हें दिन-रात यह ख़लता रहा ।  

आदमी बन आदमी के नाम पर ,     

आदमी को आदमी छलता रहा ।     


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