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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

"एक चेहरे की तोप"

"एक चेहरे की तोप"

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आजकल नकाब लगे हुए है, बहुत

सबके हृदय में छिपा हुआ है, खोट

वो आईने भी आजकल रोने लगे है,

देखकर इस मानवता का होता, लोप


व्यक्ति अंदर क्या है, बाहर क्या है?

आजकल हर व्यक्ति हुआ है, चोर

तम की होने लगी, आजकल भोर

रवि छिपा है, देखकर, तम बहुत


असली चेहरे पर पड़ गये हुए, पर्दे

नकली चेहरों से ढके है, सब लोग

हंसते-रोते है, पर न दिखते वे लोग

जो सच के खातिर खा जाते, चोट


सच सामने आते सील जाते होंठ

असल चेहरे पर मुखौटे लगे, बहुत

नकली चेहरे की ऐसी भरी है, गोद

सही चेहरे रोते, शीशे के सामने रोज


कहते है, न जीतता सत्य-अफरोज

जब हृदय पर लगती है, सत्य-चोट

तब नकली चेहरे के दांत टूट जाते,

सामने आता, असल चेहरे का रोब

 

जो बनावटी चेहरे से रहे, कोसो दूर

वो शूलों में खिलता, गुलाब बहुत

जो अंदर-बाहर जलाये, सम जोत

वो ही बनता है, एक चेहरे की तोप।


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