एक बचपन ऐसा भी
एक बचपन ऐसा भी
उसके चेहरे पे हँसी
लबो पे मुस्कान
और बचपन का उन्माद था
भूख की किलकारियों को
समझ पाना कहाँ आसान था ?
सर्दी की उन रातो में
फटे कंबल में लिपटा हुआ
एक बचपन था
आँसू में भिगोए कमीज़ में
अमीरों जैसा उसका रुआब था !
न क्षुधा का,
न कपड़ो का,
न तृष्णा का एहसास था
रोटी की खुशबू से
महक उठा वो,
जैसे खिलता एक गुलाब था !
उन हवाओ में शीतलता का
कुछ अलग - सा अरमान था
ज़िम्मेदारियो के बोझ तले दबी
ख्वाहिशों का उफान था !
दौलतमंद लोगो पे
ग़रीबो की देखभाल का
लगा इल्ज़ाम था
बाल मज़दूरी के भाषण में,
चाय लाने वाला
एक बच्चा था...!
