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Shaili Srivastava

Tragedy

4  

Shaili Srivastava

Tragedy

एक और लाक्षागृह ...

एक और लाक्षागृह ...

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जी चाहता है, आज मैं बनवाऊँ, एक और लाक्षागृह

ज़िंदा आहुति, क्यों न, दे दी जाये ?

इस बार, समस्त कौरवों की, मय धृतराष्ट्र !

जो न देख सका, और न ही सुन सका, आहटें

पुनः आने वाले, 'कोरोना' काल की।

जी चाहता है, आज मैं बनवाऊँ, एक और लाक्षागृह

ज़िंदा आहुति, क्यों न दे दी जाये ?

इस बार, समस्त गुप्तचर सेना की, मय सेनापति !

जो न देख सकी, और न ही सुन सकी, सरसराहटें

षड्यंत्रकारियों के, फेंके जाल की।

जी चाहता है, आज मैं बनवाऊँ, एक और लाक्षागृह

ज़िंदा आहुति, क्यों न दे दी जाये ?

इस बार, समस्त मंत्रिमंडल की, मय मुख्यमंत्री !

जिन्होंने, न ढंग से देख-भाल की, न संभाल की

'भारतमाता' और 'भारतमाता' के लाल की। 



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