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Shaili Srivastava

Romance

4  

Shaili Srivastava

Romance

उफ़ ! काश मैं होती 'मोती बेगम '…?

उफ़ ! काश मैं होती 'मोती बेगम '…?

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काश मैं होती 'मोती बेगम','मिर्ज़ा ग़ालिब' की ज़िंदगी की - 

वो सिसकती हुई ख़ामोशी, जो कहने को थी - 

सिर्फ़ एक तवायफ़, थी मगर - एक रोशन शमा - जिसमें -


आहिस्ता से आती, जलती और फ़िर ज़ोरों से - 

भभकती थी - मेरे मिर्ज़ा की नाज़ुक नज़्में,न था हासिल - 

उस ज़माने की - उस जैसी - नापाक दोशीज़ा को - 

मिर्ज़ा के -पाक दामन का सहारा, पर सदा - आराम फ़रमाती थी - 

वो उस ज़माने के - शरारती शायर के बाग़ी ख्यालों में, नाम उनका न मिला - मोती को -तो क्या मेरे रब, नाम उसका - ही थे लेते - वो हर मैख़ाने में और हमप्यालों में,


काश मैं होती 'मोती बेगम ', एक हसीन आरज़ू - मोहब्बत की,

 जिसके शोख़ होंठों पे - होता - मिर्ज़ा - सिर्फ़ तुम्हारा 

सुर्ख़ और सर्द कलाम, नाज़ुक हाथों में - होते -

वो बेशकीमती - शेरो - शायरी के - धड़कते हुए - कुंवारें पन्ने, 

मस्त आँखों में - पैबस्त होता - तुम्हारे गहरे दिल की - गहराई सा - 

गहराता - गहरा -गहरा काजल, और ज़ुल्म करने को - मचल - मचल जाती -

ज़ालिम मेरी - ग़ुस्ताख़ ज़ुल्फ़ों में - महकते होते - तुम्हारी यादों से - लबरेज़ - सफ़ेद मोगरे के गजरे, 


काश मैं होती 'मोती बेगम', जिसके एक पैगाम पे - 

तुम आ जाते - शहंशाह तक से - करके वादाखिलाफी, 

भुला देते - अपना दीन और धर्म - नाम पर इंसानियत के -

और ख़ुदा के लिये - मुझ जैसे ख़ुदाबंदों की करते बंदगी - 

मेरी बदनाम ख्वाबगाह में, जहाँ कोई नहीं आता - 

रूह के शर्मसार - और हर लम्हां - सिहरते हुस्न के -ढल जाने के बाद, 

न बंद होती पलकों में - क़यामत तक - जलता रहता - 

मेरी बुझती हुई - उम्मीद का - टिमटिमाता - मिट्टी का दिया,


 काश मैं होती 'मोती बेगम', हो जाती तबाह - मिर्ज़ा तुम्हारे नाम पर - 

सब्र के - जाम पे जाम - पीती रहती - मिर्ज़ा - बस, 

तुम्हारे ही इंतज़ार में, न जाती मस्ज़िद-न पढ़ती कलमा - 

बस, सज़दे पे सज़दा करती रहती - मिर्ज़ा - बस, तुम्हारे ही खुशनुमा ख्याल में, 


न होती हवस -  न होती क़सक - न होता, 

ज़िंदगी से कोई भी ग़िला - न होता 

कोई शिक़वा - न  होती कोई शिकायत - 

इस संगीन - पर, थोड़े से रंगीन ज़माने से - 

अगर, तू मिला होता ! मुझे, तू मिला होता !

बस, तू ही मेरी इज़्ज़त, तू ही मेरी आबरू , 

और, तू ही मेरी बेताब सनक होती, 


काश ! मैं होती मोती बेगम, मेरे मिर्ज़ा ! मेरे ग़ालिब !  

काश ! होते तुम्हीं से सँवरे, तुम्हीं से सजे, मेरे अरमान ! मेरे ज़ज़्बात ! मेरे ख़्यालात ! 

उफ़ !!!


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