हे माँ !
हे माँ !
हे माँ ! गोद से अपनी, हटा दो मुझको
रक्त-रंजित वस्त्र, पहना दो मुझको
रोम-रोम में, फूँक दो, शंख-नाद समर में जाने का
हे माँ ! फिर आया मौसम
मरकर पुनः तेरे गर्भ में जाने का
वो जो हैं ना, पापी-कुत्सित, नीच-पतित,
वो घर के अंदर ही सेज सजाये बैठे हैं
और, वो जो हैं ना, घातक-द्रोही, कपटी-छली,
वो घर के बाहर घात लगाए बैठे हैं
हे माँ ! कुछ तेरी प्रिय, कन्याओं के शील-हरण की,
प्यास जगाये बैठे हैं
तो कुछ मेरी प्रिय-भारत माँ के
चीर-हरण की आस लगाए बैठे हैं
विनती है माँ ! जो तू करे कृपा,
इन दुष्टों के, उन्मूलन का मुझे हल देना
ऐसे राक्षसों की बलि तुझको दे दूँ ,
बस ऐसा साहस ! ऐसी शक्ति ! ऐसा आत्म-बल !
हे माँ ! मुझको देना ! मुझको देना ! मुझको देना !
