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Shaili Srivastava

Inspirational

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Shaili Srivastava

Inspirational

हे माँ !

हे माँ !

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हे माँ ! गोद से अपनी, हटा दो मुझको 

रक्त-रंजित वस्त्र, पहना दो मुझको 

रोम-रोम में, फूँक दो, शंख-नाद समर में जाने का 

हे माँ ! फिर आया मौसम

मरकर पुनः तेरे गर्भ में जाने का 

वो जो हैं ना, पापी-कुत्सित, नीच-पतित,

वो घर के अंदर ही सेज सजाये बैठे हैं 

 

और, वो जो हैं ना, घातक-द्रोही, कपटी-छली,

वो घर के बाहर घात लगाए बैठे हैं 

हे माँ ! कुछ तेरी प्रिय, कन्याओं के शील-हरण की,

प्यास जगाये बैठे हैं 

तो कुछ मेरी प्रिय-भारत माँ के

चीर-हरण की आस लगाए बैठे हैं  


विनती है माँ ! जो तू करे कृपा,

इन दुष्टों के, उन्मूलन का मुझे हल देना 

ऐसे राक्षसों की बलि तुझको दे दूँ ,

बस ऐसा साहस ! ऐसी शक्ति ! ऐसा आत्म-बल !

हे माँ ! मुझको देना ! मुझको देना ! मुझको देना !


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