STORYMIRROR

Shaili Srivastava

Romance

4  

Shaili Srivastava

Romance

बेगम जान !...#SMBoss (Task2)

बेगम जान !...#SMBoss (Task2)

1 min
178

उस दौर के, हर दौर को, 

कल जी लिया मैंने

आँखों के, समंदर का सब जल, 

पी लिया मैंने।


जो हूँ, ना होती तो 

मैं भी एक 'बेगम जान' ही होती

ना झुकती, ना डरती, ना रोती, 

और ना शर्मसार ही होती।


लुटी-लुटाई ही होती है, 

औरत, तो क्या घर और क्या बाहर

जो होती, तुम जैसी, 

ना ऐसी और ना वैसी 'बेगम जान !


तो लुटी हुई, अस्मत से भी, 

इज़्ज़त की कमाई तो होती।

तवायफ़, ही तो बनती, 

ए मेरी प्यारी 'बेगम जान' !


ना होती, खुद से शर्मसार, 

बस थोड़ी जग-हंसाई ही तो होती.

मरती हैं  सभी इज़्ज़तदार, जिस हसीं, 

नापाक, ख़्याल के ख़्याल पे


जलती हैं, जिंदा दोजख की आग में, 

पर कदम रखतीं संभाल के।

पा लेती, मैं वो सब, ख़ज़ाने, 

बनके जो 'बेगम जान'


तो बार-बार, इस दुनिया में, 

जन्मों की आई-जाई ना होती

जो हूँ, ना होती तो, 

मैं भी एक 'बेगम जान' ही होती।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance