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Sanjay Aswal

Tragedy

4.8  

Sanjay Aswal

Tragedy

एक अनकही सी

एक अनकही सी

1 min
137


सुनो याद है तुम्हे, 

मेरी वो पहली कविता,

जिसमे एक मोड़ पर 

उस बरगद के दरख़्त के बारे में लिखा था मैंने,

जो ना केवल विशाल था आकर में,

बल्कि उसमें रचा बसा था

पक्षियों का अद्भुत संसार।


जहां घरौंदें थे अनगिनत उन परिदों के

जो रोज सुबह चल पड़ते थे

एक लंबी उड़ान भर दूर दाना चूगने

अपने बच्चों के लिए।


बच्चे भी दिन भर इसी आस में 

तकते थे उनकी राह कि

शाम जब लौटेंगे सभी तो रात सुहानी होगी

होंगे सभी साथ मिल बैठकर

करेंगे जी भर अपनी अपनी बातें।


पर उन्हें क्या पता था कि पल भर में एक सैलाब आएगा

और बरगद के दरख़्त पर जो घरौंदें थे

उसे परिंदो के साथ उड़ा ले जाएगा।


बच्चे मृत: सा पड़े तड़पते रहे,पुकारते रहे

अंत तक अपनो को,पर कोई नहीं आया।

शाम जब परिंदे लौटे तो वहां कुछ नहीं पाया

सिवाए तिनकों के।


आसपास सुबुकने का कोलाहल था

और एक लम्बी खामोशी

ओढ़े, 

दूसरे डाल पर बैठे

स्तब्ध......परिंदे....।


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