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Indira Mishra

Tragedy

4  

Indira Mishra

Tragedy

एक अबोध शिशू

एक अबोध शिशू

2 mins
171


एक अबोध शिशू जन्म लेता है माँ की कोख से

देखो कैसे ऱो रहा है

बडी बैचेनी ददॉभरी काहानी है ऐ .

माँ भी बीमाँर बचा भी बीमार भुख से तड़प रहा है


कया करेगी वेबस माँं नेहीं दूध सिने में जलरही हे अंगार

भुख और .पास से घर में दाना तक नेहीं

उपरसे आठठ् बच्चे भूखे पास बैठे हैं खाना की इसलीये


मरद कैसे वेसरम से पीकर सब लुटाया

बरवादी के नाम पर बरवादी की दास्तान

कया लीखे अव भी ओ वेटा रौ रहा है

यकीन नहीं होता उसे माँ की सत्ता अलावा उसे कुछ पता नहीं

पोना और सोना नींद टुट गये माँँ की तलाश सोते जागते


उसे तो वास माँ ही चाहिए माँ की तलाश

उसकी गौद में सोना छाती में लीपटना

कभी नहीं छौडना विश्वास नहीं होता उसे

कहीं माँ खोगई और आपस नहीं आइ तो

उसे भी खोने का डर हे वीछडने का


उसेतो जिदंगी की बारे में कुछभी पता नहीं

अभी अभी जन्म लिया बास भुख और माँ दो चिजें जानता है

फिर कैसे डर रहा है भयानक भूख से

गरीबी से बेरहम बेबस जिदंगी से


बेचनीे से शो जाएगा भुखा पास

धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगा इस बेरहम जिदंगी से

माँ की ममता की तलाश आदत पढेगा कुछ और की

ना माँ की ना उसकी ममता की ना उसकी विश्वास की

जन्म लेते ही जानगया जीओ अपने

ताकतसे लढो अपना तकदीर से


नसीब से

नहीं मीलेगी जिदंगी इस बेरहम लाचारी

बेबसी दुनिया में माँ नहीं माँकी गोद नहीं भुख ओर पास

एहसास यही तुम्हारा मनजिल है तकदीर है

यही पृथ्वी है यही माँ है


उपर खुला आसमान पैरों नीचे दो इंचों जमीन है

ओ भी तुम्हारे नहीं सरकार का है

सरकार का राज सरकार का हुकूमत


तुम्हारी जमीन तुम्हारी नहीं

तुम्हारी माँ तुम्हारी नहीं तुम्हारी कुछ भी नहीं

यही तुम्हारी तकदीर है।


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