नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं
नारी हूँ में कितने जन्म बीत गए याद नहीं मै तो ऐसे ही जन्म लेती हूँ,,,,,
कितने जन्म बीत गए,, हर जन्म में कुछ नया रुप लेकर आती हूँ,,,
सब का प्यास बुझाते बुझाते खुद प्यासी रह जाती हूँ,
कभी मा ,बहन ,बेटी, बहु और पत्नी बनते बनते थक जाती हूँ,,,
फिर भी प्यास बुझाने चली जातीं हूँ,,
कहाँ हे कहाँ हे मेरी सत्ता मेरी एहमियत सब कुछ भुला दिया ।
हर जन्म में मैं ढूंढॅती रही मैरी आत्म सत्ता
क्यूँ ना बना पाई अपनी पहचान,,,
कब से ढूँढ रही थी नारी सत्ता नारी स्वाभिमान
मेरे सत्ता मुझे कह रहे तुम नाकामयाब हो कर जी रहे हो
अपने को क्यूँ कुर्बान कर रही हो
बस एक बार ढूँढले अपनी आत्म सत्ता
फ़िर देख तू सबसे आगे
अपनों क़े लिए तो जिए आ रही हूँ
मुझे ओर क्या चाहिये
ये ही मेरी ज़िंदगी है ये ही मेरी खुशी
पर जब देबी सीता पर आन पड़ी
तब कौन संभाला था उन्हें,,,
सदियोंसे तकदीर ने संभाला उन् नारीयों को तकदीर के साथ
कभी लाज्ज रखी द्रोपदी की तो कभी माता सीता की
में तो जी रही हूँ मेरी ममता की खातिर
कभी माँ, बेटी और स्त्री बनकर
कितने जन्म लूँगी माँ बनूँगी
मेरी बेटीयों की जैसे मुझे मेरी माँ मिली थी
ऐसे ही जीना चाहती हूँ बिना कुछ शिकायत लिए
ना ढूँढपाती मेरी एहमियत
में बस एक नारी हूँ
प्रेरणा हूँ, एक त्याग हूँ
जीते जागते दिया हूँ
जलना मेरा धर्म है मेरा कर्म है
रोशनी देना मेरा काम हे
अँधेरा मिटाना नारी जीवन की सार्थकता है
समर्पण ही मेरी पूर्णता है
आहुति अग्नि सिखा में जलना,,,
उसी अग्नि से स्वर्ण सीता बनकर निकलना ही मेरो परीक्षा है ।
ऐसे ही जन्म लूँगी नारि बनकर
प्यासी रह जाऊंगी अपनो का प्यास बुझाते बुझाते,,,
खुद को जलाते जलाते
अफ़सोस ना रहेगा जबतक
अगले जन्म तक ,,,,!