एक परछायी किस्मत की
एक परछायी किस्मत की
रात नहीं ख्वाब बदलता है,
मंजिल नहीं कारवाँ बदलता है।
जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि,
किस्मत बदले न बदले
पर वक्त जरुर बदलता है।
वक़्त भी क्या हे,
एक परछायी किस्मत की ।
आछा बुरा दिल की अपनी नज़रों से देखो।
बिबेक का अन्तर आत्मा का
स्वरुप को पहचानो।
सुख-दुख मान अभिमान अहंकार
ज्ञान अर्थ मोह माया
स्वार्थ लोभ से बहत उपर हे।
ना में भुक्ता ना में भोक्ता,
ना आसक्ति ना मोह,
कर्म से आछा कर्म से बुरा,
मन से आछा मन से बुरा की परिकल्ल्पना हे
जिन्दगी और कुछ भी नहीं,
कामना से कर्म का उत्त्पन्न
या कर्म से कामना का उत्पन्न
माया मोह का उत्पन्न।
पर श्री कृष्ण का उपदेश
प्रारब्ध मेँ नहीं तुम्हारा कर्म हे।
मोक्ष्य मेँ हूँ।
जो प्राप्ति मनुष्य जीबन का अन्त हे परम्ंधाम।
मेरे शरण में आना पडेगा जब मेँ मुक्ति दूंगा
तुम्हें हर माया बंधन से।
ये सम्भब केबल मनुस्य जन्म मृत्यू लोक में।
हजार हजार बर्षों की पृतिख्या से।
काट दो बन्धन माया की डोरी।
मुक्त हो जाओ वक़्त और किस्मत की चक्रब्युह से।
जन्म और मृत्यू की बन्धन से
वक़्त हमेशा आपका साथ हे।
दूसरोँ के नजरों से ना देखो,
वक्त भी आपका साथ हे,
वो था रहेगा और अब भी हे,
बस पहचान ने की कोशिस करो।
पसीने की स्याही से
जो लिखते हैं इरादें को,
उसके मुक्कद्दर के
सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नहीं होते।