पैरों से
पैरों से
पैरो से तुम्हारा गंगा निकली जमुना बनगयी सखी
सागर तुम्हारा आज्ञाकारी और ना लिख सकूंगी फिर,,,
जीवन बन गया शुष्क मृगतृष्णा ना मिला एक बूंद जल,,
कैसे लिखूंगी तुमहो सागर,,, करूणा सागर प्यार का सागर फिर,,,
आंखोँ से तुम्हारा चांद तारे निकले जगको देते रोशनी,,,
अंधकार की अन्धेरी में बैठी रोशनी मिलेगी नहीं,,,,
जला दो जला दो दिलों मेँ ज्ञान का रोशनी मिटेगा अंधेरा मिलेगा सब को ग्ज्ञान्ं,,,
लिखूंगी तुमहो करूणा सागर प्यार का सागर फिर,,,