ए पुरुष !
ए पुरुष !
ए पुरुष,
तू क्यूं
दुविधा में हैं
देख यौवन
मुझ में लय है।
देख सौन्दर्य
मुझ में लीन है
देख सृजन
मुझ में रत है।
देख तू भी
तो मेरी ही
आकांक्षाओं मेंं
विलीन है
देख तू ही तो
मेरी कोख में
प्रतिस्थापित है।
ए पुरुष,
तू क्यूं
दुविधा में हैं
देख यौवन
मुझ में लय है।
देख सौन्दर्य
मुझ में लीन है
देख सृजन
मुझ में रत है।
देख तू भी
तो मेरी ही
आकांक्षाओं मेंं
विलीन है
देख तू ही तो
मेरी कोख में
प्रतिस्थापित है।