दुश्मन
दुश्मन
अपना दुश्मन स्वयं बन रहा है
नाम दूसरा का लेकर
स्वयं को छल रहा है
बात-बात पर यूँ नाराज़ है मुझसे
मानो मेरे दिल की आग में
वो जल रहा है
नुमाइश की कोई चीज़ नहीं
आईना -ए-दिल है साहिब !
अश्कों की नुमाइंदगी में
कोई ख़्वाब पल रहा है
ख़ामोश है समंदर जाने कितने
इस दिल के अंदर
तूफान का क्या ठिकाना
अब नहीं था और अभी उफ़न रहा है
दुश्मन-दुश्मन करती है दुनिया
भला कौन दोस्त किसका हुआ है
जिसको भी देखो हर एक रिश्ता
मतलब के साँचे में ढल रहा है।