दस्तक
दस्तक
दस्तक मेरे द्वार पर अब नहीं होती,
टकटकी लगाकर देखता हूँ,
कानों को चौकन्ना रखता हूँ,
हर पल इंतज़ार करता हूँ
कोई तो आएगा मेरा हाल पूछने,
किन्तु द्वार भी मेरा अश्कों से भीग जाता है,
स्वयं को वह भी तन्हा ही पाता है,
अब उसमें कोई हलचल नहीं होती,
दस्तक मेरे द्वार पर अब नहीं होती।
मेरे संगी साथी सुख, ख़ुशी और वैभव
तीनों मुझे छोड़ कर चले गए,
लगता है सब उन्हीं के मित्र थे,
मेरे तो सिर्फ परिचित थे,
इसलिए उनके जाते ही मुझसे
नाता तोड़ गए, द्वार बेचारा नहीं समझ पाता
इस दुनियादारी को,
चाहता है कोई उसे खटखटाए,
लेकिन अब कोई आवाज़ नहीं होती,
दस्तक मेरे द्वार पर अब नहीं होती।।
