द्रोण नहीं बन सकता मैं..!
द्रोण नहीं बन सकता मैं..!
Thank you teacher
(1)
नहीं..!!!
द्रोण नहीं बन सकता मैं..!
क्योंकि..
द्रोण बनकर मुझे
पुत्र स्नेह के मोह में
खुद को जकड़ना पड़ेगा!
और..,
नमक का कर्ज चुकाने के लिए
अर्जुन को श्रेष्ठ धनुर्धर का
आशीष भी देना पड़ेगा..!
फिर...,
स्वयं के वचन की रक्षा के लिए
किसी एकलव्य का अंगूठा लेना पड़ेगा..!
नहीं..!
नहीं, बन सकता मैं द्रोण!
पर...!
तुमको किसने रोका है
एकलव्य बनने से....?
नहीं..!
अर्जुन कदापि न बनना
क्योंकि..,
अर्जुन को श्रेष्ठ बनने के लिए
प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी,
अपने ही अग्रज से अनभिज्ञ होकर,
अर्जुन को विजयी होने के लिए
सारथी चाहिए कृष्ण सा...!
और..,
वरदान भी..!
श्रेष्ठ धनुर्धर होने का..!
अरे हाँ...!
और सुनो..,
कर्ण भी नहीं..
अपनी श्रेष्ठता को दिखाने के लिए
जीना पड़ेगा मिथ्या संग,
शापित भी होना पड़ेगा,
किसी परशुराम से
सभी विद्या को विस्मृत हो जाने का,
वक़्त और जरूरत पड़ने पर..!
अपनी ममता का हनन करना पड़ेगा,
किसी कुन्ती को भी तुम्हें
कर्ण बनाने के लिए.!
जाओ..!
एकमात्र विकल्प है
एकलव्य बनने का संकल्प ले लो,
तुम्हें किसने रोका है एकलव्य बनने से...!
हाँ..!
बस मैं द्रोण नहीं बन सकता,
हाँ...!
नहीं बन सकता मैं द्रोण..!!!