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Manoj Godar

Tragedy

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Manoj Godar

Tragedy

दरिंदगी की इंतहा

दरिंदगी की इंतहा

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दरिंदगी की इंतहा, होने लगी है।

इंसानियत भी अब, रोने लगी है।

मां बहन बेटी की गरिमा अब तो

सरेआम नीलाम ,होने लगी है।

मानवता के दुश्मन, कुछ बहशियों से

मानवता भी अब, खोने लगी है।

पावन पतित नारी ,लज्जा की मूरत

अस्मत को अपनी, खोने लगी है ।

पुरुष प्रधान समाज की कुरीतियों का

नारी अब बोझा ,ढोने लगी है।

बहशी दरिंदों को देकर के सह 

सियासत भी विश्वास ,खोने लगी है।

नाबालिग मासूम बच्चों की चीखें

खंजर सा दिल में, चुभोने लगी हैं।


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