दर्द के आंसू
दर्द के आंसू
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बहते दर्द से जुड़ा है ये जीवन
अब वो दर्द के आंसू
कुछ स्याही बन के
कलम से निकले और कुछ
आंसू आंखों से बह गए
कुछ आंसू को तो तकिये ने पी लिए
और कुछ बहती धारा को पौधे ने
बाकी जो कुछ बचा
वो दिल में समंदर बन गए ...
फ़िर भी ये दर्द न कम हुआ
न ही ये आंसू सुख रहें हैं
न जाने दिल को दर्द ही क्यों होता है
न दिल होता न भाव होता
न ही ये दर्द के आंसू बहते
न हमें यूं ये दर्द पीड़ा सताते