दोस्तों का छुट जाना Part 2
दोस्तों का छुट जाना Part 2
कुछ मस्तीयां तो कुछ बेशर्मिया होती,
हर बातो में कुछ ना कुछ ठिठोलीया होती,
उन ठिठोलियो का न आना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
न हाथो में घड़ी थी ना काँटो सी रफ़्तार,
फ़िर भी दोस्तों के लिये थी हर चीज कुर्बान,
अब उन कुर्बानियो का दफन हो जाना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
कुछ समय बदला कुछ हम भी बदले,
ऊचाईयोँ कि चाहत में जमीं कहिं खो बैठे,
अब उन जमीं का न मिलना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
चुसकियाँ चायो की होती है पर वो मिठास नहीं होती,
याद उनकी दिलो में होती है पर कभी उनसे बात नही होती,
अब उन जज्बातों का मर जाना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
मंजिल मिली मुझे कुछ सपने भी मिले,
पर वो खुशी न मिली जो उनसे मिले,
उस वक्त का बेवक्त हो जाना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
कुछ बिछड़े तो कुछ अनदेखे राँहो में मिल गये,
मिल के भी दुजे से अंजान हो गये,
हम सब का यू बदल जाना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।
सबकी बात निराली थी,
हर एक दोस्त की अलग कहानी थी,
उन कहानीयों का दफ़न हो जाना याद आता है,
मुझे दोस्तों का छुट जाना याद आता है।