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संदीप कुमार

Abstract

5.0  

संदीप कुमार

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रिश्तों की राहें

रिश्तों की राहें

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321


जामाना बदला कुछ अपने भी बदले,

समय के साथ रुख हवााओं ने भी बदले,

पगदंडीया भी बोल उठी इतरा कर,

रिश्तों कि राहे कुछ हमने भी बदले।

मोल अब अपनो का नहीं पैसो का हुआ करता हैं,

दिल के जगह पर बात महलो के हुआ करता हैं,

कभी पलके हुआ करते थे हम उनकी आँखो के ,

आज आँसुओ से हरदम तकीया भीगोंया करते हैं।

प्यार बदला,

सबके नजरीया भी बदला,

पगदंडीया भी बोल उठी इतरा कर,

रिश्तों कि राहे कुछ हमने भी बदले।

अरमान अपनो से नहीं शीशो से सजने लगे हैं,

पैसों के नीचे प्यार अपनो के दबने लगा हैं,

हो गये अन्धे अपने ही चाहत में अब,

लालच के काले बादल भी हमे डसने लगे हैं।

जिन्दगी बदली और जीने का सलीका बदला,

चेहरो ने भी अपना मुखौटा बदला,

पगदंडीया भी बोल उठी इतरा कर,

रिश्तों की राहे कुछ हमने भी बदले।




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