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dr.Susheela Pal

Tragedy Classics Fantasy

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dr.Susheela Pal

Tragedy Classics Fantasy

दोगलापन

दोगलापन

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पवित्र पावनी गंगा को,

याद तो श्रद्धा से करते हैं।

किन्तु पापनाशिनी के

आशय से पूजन-अर्चन करते हैं।


पतित पावनी कह स्नान करते,

लेकिन मलिनता ही तो घोलते हैं।

फिर भी मन किसी का साफ नहीं,

सोचों पावन है विश्वास कहीं?


धर्म को कर्म से जोड़कर,

क्यों नहीं चाहते लोगों का कल्याण!!

निसर्ग ने दिए उदाहरण भरपूर,

मानव ने उल्लू साधे, अपने निराकुल!!


जब देखा आरक्षित सिर पर चढ़कर गा रहा!!

थर्ड वर्ग भी ज्ञान का भंडार सजाता जा रहा।

फिर हिल गया सिंघासन इंद्र का,

आरक्षण हटाओ का नारा

वह सजा रहा स्वार्थवादिता से परे यज्ञ 


कुछ ऐसा प्रगटाया जाए,

कनखी दृष्टि  विचार पाए

चुप्पी साध  वह मात खाए

कब तक इन दोगली विचार धारा के

अभिमुख रहा जाए !

निर्दोष अभिमन्यू ही चक्रव्यूह के

घेरे में क्यों कर आए।


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