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dr.Susheela Pal

Abstract Tragedy Inspirational

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dr.Susheela Pal

Abstract Tragedy Inspirational

चिंतन

चिंतन

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मैं भी तर गया

मैं भी तर गया

प्रेम से ही मुकर गया

ईर्षा द्वेष की भावना लिए 


सपनें दरवाजों से

झांका नहीं करते

नींद भी अदना चाहिए 

सपनों को बुनने के लिए 


बारिश भी लुकाछिपी

खेल रही बादलों संग

लुत्फ उठा रही है धरती

सौंधी - सी मिट्टी की महक लिए 


कुढ़ता जा रहा है मनुष्य

एक दूसरे को गिराने से

जलन की ऐसी तपीस में

जी नहीं पा रहा है सुकून के लिए 


कोई तो जुगत लगा ए दिल 

आदमी बस आदमी बन पाए

जीवन की इस आपाधापी में

' साथी ' बस मुस्कराने के लिए 


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