सरल
सरल
इतना मुश्किलक्यों है....सरल होना...!
क्या होता है..सरल होना..?
जो किसी के चेहरे की मुस्कान
देखकरअनायास ही मुस्कुरा उठे।
जो किसी के आंसुओं को देखकर
वजह जानने को आतुर हो जाए..
जो अपनों की बात पर कभी नाराज़ न हो..
जो किसी वाद-विवाद से खिन्न हो जाए..
यह भावनाएँ अवश्य कुछ लोगों ने तो जी हैं
फिर असम्भव कैसे हो गईं..?
जानते है कलियुगी हवा बह रही है
किन्तु यह कैसे भूल गए...!
कि परछाईं तो हमेशा से काली ही रही है।
फिर भी परछाई ही क्यों कर सच्ची मानें..!
उजाले ही परछाईं को पोषित करते हैं..अंधेरे नहीं।
