चिंतन
चिंतन
मैं भीतर गया मै भी तर गया
प्रेम से ही मुकर गया
ईर्षा द्वेष की भावना लिए सपने दरवाजों से
झांका नहीं करते
नींद भी अदना चाहिए सपनों को बुनने के लिए
बारिश भी लुका छिपी खेल रही बादलों संग लुत्फ उठा रही है धरती
सौंधी - सी मिट्टी की महक लिए
कुढ़ता जा रहा है मनुष्य एक दूसरे को गिराने से
जलन की ऐसी तपीस मेंजी नहीं पा रहा है सुकून के लिए
कोई तो जुगत लगा ए दिल आदमी बस आदमी बन पाए
जीवन की इस आपाधापी में' साथी ' बस मुस्कराने के लिए।
