दो कदम
दो कदम
जिंदगी के हर मोड़ पर मिलते रहे
मिल-मिल कर बिछड़ते रहे।
एक पल भी यादों के साथी न बन सके
कोई दास्तां न बन सकी
कोई राह न मिल सकी।
कहते-सुनते, सुनते-कहते बढ़ते रहे
एक लम्हा तक अपना बना न सके
एक दूजे में शरीक भी न हो सके।
परछाई तो बने नहीं।
दो कदम भी साथ चल न सके ।
