दो बादल के टुकड़े
दो बादल के टुकड़े
आसमान से उतरे हैं
दो बादल के टुकड़े
नीलकंठ बन विचर रहे हैं
वसुंधरा की हरी मखमली दूब पर
लचकती पेड़ों की डालियों पर
झूलते हैं तो
कभी फूलों के गान के साथ
फुदक फुदककर चहकते हैं
आसमान से उतरकर
पहली बार आये पृथ्वी लोक पर
अचंभित हैं
नई दुनिया के सजीले सपनों की
सेज को
सामने पाकर
आपस में विचार विमर्श करते हैं
यहीं ठहर जायें हमेशा के लिए
यह प्रयास करते हैं
या कुछ पल यहां गुजारकर
फिर लौट जायें
अपने आकाश
अपनी मंजिल
अपने घर
किसने रोका है
जी में आया तो
फिर उतर आयेंगे
भीगे आकाश से
इस हरी भरी धरा पर
इस बार कुछ अधिक देर
ठहरने के लिए
साथ में गुजर बसर का
कुछ ज्यादा सामान बांधकर
लायेंगे।