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Dr Alka Mehta

Tragedy

4.5  

Dr Alka Mehta

Tragedy

दमन

दमन

2 mins
127



                   


 

 दिन-रात करते करते दमन, हत्या ही कर दी तुमने मेरी उमंगों की, मेरे अरमानों की,

तुमने तोड़ा ,जख्मी किया, मेरा दिल

और कभी कोशिश भी न की

मरहम लगाने की।

मेरी क्या मजबूरी थी तुमसे रिश्ता निभाने की दुनिया ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने की।


सफ़ेद खून के पुतलों से कैसे

उम्मीद हो रिश्ते निभाने की ,

आदत नहीं जाती तुम्हारी

मुझ पर इलज़ाम लगाने की,

तुमने चाहा मैं हो जाऊं हर प्यार के रिश्तों से दूर,

न जाने तुम्हें है क्या और किस चीज़ का गरूर,

एक बात तुम्हें कहनी है जरूर

तुम मेरे कोई नहीं ,

क्यूंकि तुम्हारी आँख मेरे लिए रोइ नहीं।

जज़्बात का दरिया जो बहता था

तुम्हें देख कर आज बर्फ की चट्टान हो गया ,

तुम्हारे कारण बर्फ-बर्फ मेरी हर उमंग, मेरा हर अरमान हो गया है।

जिंदगी से नफरत हुई है तुम्हारे जैसा इंसान देखकर,

जब अपना खून ही अपनों से राजनीति खेले,

कोई कैसे उस इंसान को बाँहों में ले-ले?


तुम्हें देखकर लगता है रब से कोई खता हो गयी ,

तुमसे भी होते हैं ?इंसान खता की इन्तेहा हो गयी,

रब से खता हुई तो क्या ?

रीत है जमाने की,

घायल दिल किया पर कभी कोशिश न की मरहम लगाने की,

मैंने तो किसी से तेरी बेवफाई की चर्चा न की ,

पर तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी दुश्मनी निभाने की,

तुमने ब्रेकिंग-न्यूज़ की तरह चर्चा की मेरे अफ़साने की।


दिन-रात करते करते दमन हत्या ही कर दी तुमने मेरी उमंगों की ,मेरे अरमानों की,

तुमने तोड़ा ,जख्मी किया मेरा दिल और कभी कोशिश भी न की

मरहम लगाने की।

भाव भरा दिल दूसरों के दुःख में भी रोता है, पर पशु अपने दुःख में रोता है,

तुम्हें देखकर लगता है कहाँ इंसान पशु से ऊपर होते हैं,

तुम्हें देखकर खिलता था कभी दिल का फूल,

पर तुमने शब्द छोड़े हैं जुबां से जैसे कोई शूल,

आह नहीं निकली मेरे दिल से फिर भी क्यूंकि,

मालूम है कमी नहीं है ज़माने में तुम जैसे इंसानों की,

रोका ज़माने ने मुझे पर सुनी न एक ज़माने की,

मुझे क्या जरूरत है तुम्हारे साथ निभाने की?


दिन-रात करते करते दमन हत्या ही कर दी तुमने मेरी उमंगों की ,मेरे अरमानों की,

तुमने तोड़ा ,जख्मी किया मेरा दिल

और कभी कोशिश भी न की

मरहम लगाने की

इतना कैसे क्रूर हो, किस मद में मगरूर हो, कब टूटेगा तुम्हारा नशा,

अपनी तरफ देखो कभी ,क्यों आती है बस नज़र ज़माने की खता,

तुमसे रिश्ता कैसे करूँ खत्म ,दो कोई उपाय बता,

अपनों से कोई इतना कभी चिढ़ता है?

इतना अपनों को कोई बेइज़्ज़त करता है?

तुमसे अपना रिश्ता देखकर लगता है

नज़र लग गयी ज़माने की।

दिन-रात करते करते दमन ,हत्या ही कर दी तुमने मेरी उमंगों ,की मेरे अरमानों की,

तुमने तोड़ा जख्मी किया मेरा दिल

और कभी कोशिश भी न की

मरहम लगाने की।



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