दम तोड़ते रिश्ते
दम तोड़ते रिश्ते
तुम्हारा साथ क्यूँ
मुझे कुरेदता है
हर पल ही फिर
एक नया जख्म
देने को आतुर
बन बैठा है सामने
जबकि कल ही
तुमने सूखे हुए
जख्मों को
अपने शब्दों से
खरोंच दिया।
एक सकूँ की आस लिए
कितने अरमान थे
मेरे दिल में बसे हुए
जो की तिल तिल ही
बढ़ रहे थे
मुझसे तुम्हारे बारे
में बहुत खूब
कुछ कह रहे थे।
जब तरुण यौवन की
बेला में तुम्हारी
संगिनी बन आयी थी
सहमी थी डरी थी
मैं बहुत सकुचाई थी,
फिर फिर कर मेरा
दिल मुझे समझाता
बताता की नाहक
में विचार मत करो
अजनबी को अपना
देव तुल्य स्वीकार करो।
चरण बदन को भी
मैंने स्वीकार किया
था उस क्षण जब
की किसी अजनबी
का छू जाना भी
बर्दाश्त नहीं कर
पाती थी,
आज एक अजनबी से
मिलने में बहुत शर्म
भी क्यूँ आती थी।
अब तो बेबाक तुम्हारा
चेहरा ही तकती हूँ,
किया समर्पण तन मन
तुझ पर नाहक ही
समझती हूँ,
जो नर नारी को
सम्मान न दिया
नर कैसे हो सकता है?
मन ही मन में मैं जलती
हाय विधाता तू ऐसे ही
क्यूँ छलता है?
काश !मैं इनका वर्तमान रूप
कल देखी होती
इस जन्म की बात क्या
कभी न इनकी होती।
अब तो घुटन होती है
इतनी ,महलों में
रह कैसे पाती
जीवन घुट घुट कर
जैसे न जी सकी
न ही मर पाती।
प्यार न्योछावर जो करता था
उसको न स्वीकार किया
अपने हाथो ही मैंने
अपने जीवन का
जाने क्यूँ प्राण लिया।
उड़ जाना चाहती हूँ
मतवाली बयार जहाँ हो,
आजादी मैं चाहती हूं
खुल कर बादलों से
मिलकर आसमान में
दूर तक उड़ना चाहती हूं।
चेहरे पर ख़ुशी जहाँ चमक
लिए चाँदनी छा जाती हो,
नदियॉ के कलकल
करती धाराओं के साथ,
खिलखिला कर
मैं हँस लेना चाहती हूँ।
इस समाज के बंधन को
तोड़ मरोड़ कर किसी
कोने में फेक देना चाहती हूँ,
जहाँ घुटन में जीवन यापन की
मर्यादा का नाम थोप दिया है,
जीते जी कितनो के घुटती
वेदनाओं को
घुँघुट में कैद कर दिया है।
कब समझ पायेगा ये ढोंगी समाज
कब तक ऐसे रिश्तों को,
जबरदस्ती ही
बांध कर नाम दिया जाएगा
पीछे भले गाली ही दे
करुण क्रन्दना
सामने होने पर देव समान
हर रोज मजबूर हो कर
झूठी मुस्कान लिए
पूजा जाएगा
और यही एक पवित्र रिश्ता भी
कहलायेगा।
