दिवाली
दिवाली
दिवाली में देखा मैंने जगमग घरों में दिए,
देख उनकी शोभा मन मेरा कहीं खो गया,
लगी बैठी सोचने ये रोशनी है किसलिए,
क्या जो अर्थ है इनका वो पूरा आज हो रहा।
क्या आज फिर से राम कोई सीता को बचाए लाए,
या महल कोई रावण का राख आज हो रहा,
लगी बैठी सोचने ये रोशनी है किसलिए,
क्या जो अर्थ है इनका वो पूरा आज हो रहा।
क्या खुशियाँ आज देश का हर घर यूं मना रहा,
या दूर से देख कोई मन में दिए बस जला रहा,
लगी बैठी सोचने ये रोशनी है किसलिए,
क्या जो अर्थ है इनका वो पूरा आज हो रहा।
क्या हर घर आज यहां पकवानों से भरे हुए,
या आज भी कही कोई भूख में अकुला रहा,
लगी बैठी सोचने ये रोशनी है किसलिए,
क्या जो अर्थ है इनका वो पूरा आज हो रहा।।