"दिया"
"दिया"


आज मुझ बेजान सी माटी को दिया
एक कुम्हार के मेहनतकश हाथों,
ने दीये का सुन्दर रुप,
मुझ को भट्टी में पका कर किया,
मज़बूत फिर किया मुझ पर,
रंग-रोगन जब मैं बना छैल-छबीला,
दीया"
अब कुम्हारीन चली सजा कर,
अपनी टोकरी में जब हाट-बाज़ार,
जब आए ख़रीददार कुम्हारीन ने बताया ,
मेरे दीये सबसे मज़बूत आप ले लो,
बाबूजी ये जगमग कर देगा आपकी,
आलिशान कोठी को
होगी दीपावली, भी जगमगाते
दीयों से रौशन
दीया भी इठलाया सोच कर,
मुझ में है अंधेरे को हरा देने की
क्षमता, मुझ में है भटकों को
राह दिखाने और राह रौशन
कर देने की क्षमता
मैं एक नन्हा दीया"