दीया की बात
दीया की बात
जाने कितने दीये
जले हैं आज अमावस में
दीवाली के नाम।
एक दीया मचल रहा है
जलने को
और तलाश रहा है
जलते हुये दीयों के बीच
अंधेरा,
ताकी रोशनी हो
वहाँ भी जहाँ अंधेरा शेष है
दीवाली तो एक दिन का
उत्सव है
और कमबख्त अंधेरा तो घेरे हुये
जीवन को
सदियों से
एक हाथ मचल रहा है
उस मचकते हुये दीये को
अंधकार तक ले जाने को
क्यों कि उसे पता है
रौशनी करने को मचलता हुआ
दिया बुझ जायेगा
पर अंधेरा उससे नहीं मिलेगा
बेचारा इतनी सी बात समझ
नहीं पा रहा है
जहां वह रहेगा
अंधेरा कहाँ दिखेगा।