धूप छांव
धूप छांव
जीवन धूप छांव सा लगता है
कभी खुशी कभी गम में डूबा लगता है।
कभी उम्मीदें और विश्वास एहसास होता है कुछ खास।
और कभी खुद से ही नाराज सा हुआ लगता है।
यह जीवन है, क्या होता है क्या लगता है?
इससे फर्क ही क्या पड़ता है?
जीवन जो दिन दिन बढ़ता था केवल मां की कोख में,
अब तो हर दिन घटता सा ही लगता है।
कभी उमंग से भरा यह जीवन, कभी वीराना सा लगता है।
यह जीवन है, एक बार मिला है, इसको ना बेकार करो।
जग में रहकर कुछ काम करो
औरों के साथ खुद का भी तुम उद्धार करो।
यहां से जाना निश्चित है।
कुछ ना ले जाना निश्चित है।
फिर परमात्मा प्रदत्त हर वस्तु से क्यों ना तुम परोपकार करो।
इस धूप छांव से जीवन में
तुम खुद से भी तो प्यार करो।
सुख-दुख आगंतुक हैं आने जाने दो।
अपने मन को केवल सकारात्मक विचार लाने और शुभ कर्म करने के लिए
प्रतिदिन खुद को तैयार करो