धूमिल नज़र
धूमिल नज़र
तेरे तोड़ने से टूटी नहीं,
अभी भी आगे बढ़ने
की हिम्मत हूँ रखती।
अपने प्यार पर विश्वास
इसलिए चट्टान-सी खड़ी।
तेरा फरेब
सहने की हिम्मत हूँ रखती।
कितनी भी बौछारे करे दुनिया
तूफान में भी अडिग खड़ी रहूँगी
वो हौसला हूँ रखती।
अपने पर है भरोसा
इसलिए
एक नई रहा पर हूँ निकली।
अपने सुताओं को
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ा
आगे बढ़ने का जनून हूँ रखती।
तेरी शब्दों को अपना हत्यार बना
अपने दर्द को छिन्न-भिन्न
करने की ताकत हूँ रखती।
मोह अगर तेरी मुद्रा का होता
निस्वार्थ सब अर्पण न करती।
पर तेरी
धूमिल नजर देखी न पाई।
तेरे इस छल चक्रव्यूह को तोड़
आगे बढ़ने का जिगरा हूँ रखती
मैं वो सुता हूँ
जो तेरा घर सँवारना भी जानती
और समय आने पर उड़कर
अपना आसमान
ढूँढने का साहस भी हूँ रखती।