धरती अंबर पृतश्याम
धरती अंबर पृतश्याम
फूल फूल से मकरंद चुराकर
भंवरा नटखट मुस्कुराता है !
जबसे आया बसंत मनभावन
सबका दिल ख़ुशी से झूम जाता है !
अल्हड़ सी यह पवन पुरवाई
खेले जब ज़ब कामिनी अठखेली,
गेहूं की बाली थोड़ा चटके
आने वाली है रंग रँगीली होली !
धरती अम्बर एक हो जाएंगे
ऐसे उड़ेगे कुछ रंग और रंगोली !
नीले अम्बर पे पीले छायेंगे
चलेंगे खेलने हम फाग हमजोली !