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V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

सगर्व

सगर्व

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मानवीय रिश्ते बहुत महान

 नित नवण प्रणाम।।


नौनिहाल पर हम गर्व करते,

सगर्व जीने का है मौका देते।

उन्हीं को ही संतान कहते हैं,

वो मात-पिता संतुष्ट रहते हैं।।


जीवन भर हर संकट वक्त में,

कंधे से कंधा मिला रहे संग है।

भरत-लक्ष्मण समान जो चले, 

कहे उसे 'भाई' जीवन अंग है।।


सुख दुःख और भूख प्यास में,

भागीदार निर्धनता में आस है।

तंगी में भी निभाती जो साथ,

वह 'अर्धांगिनी' का विश्वास है।।


कम-ज्यादा नित संतोषी रहे ,

न दुखी होवे न कुछ भी कहे ।

रहे माँ-बाप, परिवार में ख़ुश, 

उसको सब 'बह

न, बेटी' कहे ।।


चाहे जितने मतभेद हो जाए,

तो भी संग  विवाद सुलझाए।

झगड़ा समाप्त कर, सुधार दे, 

वही जगत में 'कुटुम्ब' कहाये।।


कोई भी जब संकट आ जाये,

ऐसी घड़ी में जो साथ निभाये।

बिगड़ी को जो बनाकर दिखाए,

वही तो सही 'सम्बन्धी' कहाये।।


जो कहाता नित एक वटवृक्ष है,

बाहर से संकट हरण में दक्ष है।

अंदर ही अंदर पांव न खींचकर,

एक साथ रहे 'समाज' प्रत्यक्ष है।।


विपत्ति में जो रहे नित साथ है,

मुसीबत रखता हल का हाथ है।

निस्वार्थ हैं जो कल्याणकारी कर्मी,

मित्र कहाये कर्म नित परमार्थ है।।


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