धर्म अंधा था, कानून अंधा है !
धर्म अंधा था, कानून अंधा है !
इतना सहज कैसे बन जाता है,
ये स्त्री हनन, ये बलात्कार,
आखिर इतना सहज कैसे बन जाता है,
इतना सहज कि पुराणों में,
स्वयं प्रभु को छद्म रूप धारण कर,
करना पड़ा स्त्री के सतीत्व को भंग,
जिस स्त्री का सतीत्व,
बना सकता था, उसके पति को,
त्रिकाल विजयी और स्वर्ग का अधिकारी,
उस मान मर्दन को,
स्वयं विधाता ने,
आखिर इतना सहज कैसे बना दिया !
इतना सहज कैसे बन जाता है,
ये चीर हरण,
स्त्री की गरिमा का,
जब कु
रु सभा में बैठे महारथी भी,
बन कर रह जाते हैं एक मूक दर्शक मात्र,
और विडंबना ये कि स्वयं प्रभु की बहन
है दांव पर अस्मिता लिए,
इस चीर हरण को इतना सहज कैसे बना दिया,
बलात्कार इन कथाओं में इतनी सहजता से कैसे होता रहा है बयां ,
और आज भी इतना सहज भला कैसे है,
कि देश का एक बड़ा नेता कह जाता है,
कि लड़के हैं, लड़कों से भूल हो जाया करती है !
ये सहजता चीख कर बयां करती है,
तब धर्म अंधा था,
आज कानून अंधा है ..!