धरा का श्रृंगार
धरा का श्रृंगार
हे मानव ...
न कर दुष्प्रवृत्तियों का प्रचार !
न फैला दुःख और घृणा के विचार !
परस्पर शान्ति की बात हो ...
हरी भरी धरती का पेड़ पौधों से श्रृंगार हो !
न काटे कोई वन में पनपते पेड़ ..
न कुल्हाड़ी से धरा के वृक्षों पर हो प्रहार !
न करे मानव कुसुमित पुष्पित पल्लवित..
पृथ्वी पर अपने स्वार्थ से अत्याचार ...
जब तक रहेंगे हरे भरे वन ..
तब तक होगा सुख से सम्पन्न जीवन !
अगर न होगा वृक्षों का हरा भरा संसार !
तो पर्यावरण में छाने लगेगा हाहाकार !!
ये पेड़ पौधे वन्य जीव जंतुओं से ही है जल
चक्र की शान ।
ये पेड़ पौधे ही पर्यावरण का बढ़ाते मान !
शस्य श्यामला धरा की है ये अनमोल पहचान !
पर अपनी इच्छाओं के मायाजाल से मानव मुक्त
कहाँ हो पाता है ?
इन स्वार्थी मनोरथों के कारण लालच उसे सताता है ।
परिणाम स्वरूप कभी अतिवृष्टि कभी अनावृष्टि ,
का जोखिम भी उठता है !
अगर न होंगे वन तो कहाँ प्रस्थान करेंगे !
वन में रहने वाले वन्य जीव जंतु पशु एवं अन्य जन
बेशक पेड़ जड़ से नज़र आते हैं !
पर देखना पास से क्या वे केवल जड़ ही कहलाते है..
पेड़ जड़ नहीं होते ..वह होते हैं चेतन !
जो अपने समस्त हिस्सों से मानव जीवन को
सुखी बनाते हैं !!
ऐसे में क्या हम सोच पाते है ?
कि इन पेड़ पौधों से हम अपनी धरती का करे श्रृंगार ,
तभी पर्यावरण में चहुँ ओर फैलेगी स्नेह की बयार !