धोखा
धोखा
रोई बहुत होगी जब ,उसका गला काट जा रहा था।
खूब पछताई होगी अपने पर,जब उसको 35 टुकड़ों में बांटा जा रहा था।
रोना दर्द का नहीं था, वह रोना था धोखे का।
पश्चाताप नहीं मरने का था, प्यार में विश्वासघात का ।
प्यार में डूब गई थी उसके में, लाज शर्म से ना घबराई थी।
पापा के आंसू को ठुकरा कर, उसकी बाहों में समाई थी।
श्रद्धा से झुक गई थी जो, उसके प्यार में।
उसी श्रद्धा ने उसके हाथों अपनी जान गवाई थी।
श्रद्धा तुम तो चली गई, औरों को सबक सिखा गई।
प्यार के झूठे जाल में फंसने वालों की, तू प्रेरणा बन गई।