देती नहीं जवाब वो मुझे
देती नहीं जवाब वो मुझे
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पढ़ कर मेरा खत वो फ़ाड़ देती है,
देती नहीं जवाब वो अब नजरें चुराती हैं,
जरूरत उसकी बस दोस्ती निभाती हैं,
कहाँ उसे अब वे वक़्त मेरी याद आती हैं,
मुसलसल लिखे खत मैंने उसको,
न कोई जवाब मुझे भिजवाती हैं,
तेरे इन इशारों को मैं क्या समझूं
कभी आती कभी जाती हैं,
न कोई बात अब तू मुझे बताती है।